भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने के मामले में भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना विरोध व्यक्त किया है। सरकार ने अपने हलफनामें में आपत्ति जताते हुए कहा, ‘समलैंगिक-विवाह’ को मान्यता देने से पूरी वैवाहिक व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगी। इस तरह की शादी देश में “पूर्ण विनाश” का कारण बनेंगी। यह बयान इस मुद्दे पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा आज तक का सबसे स्पष्ट बयान है। केन्द्र ने 56 पेज के एफिडेविड में सेम सैक्स मैरिज का विरोध किया है।
आखिर क्यों केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह मुद्दे पर दिया कठोर बयान
सरकार द्वारा विरोध ऐसे समय में आया है जब LGBTQ अधिकारों के बारे में बहस तेजी से भारतीय अदालतों में हो रही है। 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक सेक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। इसके बाद से ही शहरों में ‘प्राइड डे’ जैसे सेलिब्रेशन, परेड सार्वजनिक रूप से मनाये जाने लगे। दिल्ली हाईकोर्ट समेत देश की अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की अनेक याचिकाएं दायर की गई थीं। केन्द्र सरकार इन सभी याचिकाओं का विरोध कर रही है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस जेवी पारदीवाला की बैंच ने इस मामले को यह कहते हुए संवैधानिक बैंच के पास भेज दिया है कि यह मामला संविधान से जुड़ा हुआ है इसलिए 5 जजों की संवैधानिक बैंच इसकी सुनवाई करे। संवैधानिक बैंच आगामी 18 अप्रैल 2023 को सुनवाई शुरू करेगी। इतना ही नहीं सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग भी कराई जाएगी।
क्या है प्रधान मंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के विरोध का आधार
केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब दो समलैंगिक शादी करेंगे तो वे बच्चे गोद लेंगे और बच्चे को गोद लेने पर सवाल उठेगा। इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जरूरी नहीं कि एक समलैंगिक जोड़े की गोद ली हुई संतान भी समलैंगिक ही हो। केंद्र ने कहा, भले ही सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि याचिकाकर्ता समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा करेंगा। सरकार की माने तो समलैंगिक विवाह भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ है और इस तरह के विवाह की तुलना भारतीय परिवार के पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों की अवधारणा से नहीं की जा सकती है।
केंद्र सरकार का कहना है कि देश के कानून में भी कहा गया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती। क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है और उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं। समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग- अलग माना जा सकेगा? केंद्र सरकार ने व्यापक अर्थों में अपनी दलीलें पेश करते हुए कहा की इस मामले पर विचार-विमर्श करने और निर्णय लेने के लिए संसद पर छोड़ देना बेहतर है।
क्या है विपक्षी दलों का पक्ष
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के सवाल पर विपक्षी दल सीधा बयान देने से बच रहे हैं। कांग्रेस, जिसने 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उत्साहपूर्वक स्वागत किया था, अब तक इस मामले में चुप्पी साधे है। इसके पीछे की एक वजह इस तरह के मुद्दे का पार्टी एजेंडे में ना होना माना जा सकता है। विपक्षी पार्टियों में केवल सीपीआई (एम) ने खुले तौर पर सर्थन किया है।
आरएसएस पुरे मामले में सरकार के समर्थन में है
RSS ने भी इस मुददे पर अपनी राय स्पष्ट कर दी है। RSS के बड़े नेता दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि उनका संगठन समलैंगिक विवाह के मुददे पर पूरी तरह से केन्द्र सरकार के दृष्टिकोण से सहमत है। सरकार की तरह संघ भी मानता है कि विवाह केवल विपरीत लिंग के दो लोगों के बीच हो सकता है। यानि इस व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ की गयी तो भारतीय वैवाहिक व्यवस्था तहस-नहस हो जाएगी।